भारत आस्था और आस्था के मानने वालो का पावन भूमि है, यहाँ हर गांव-शहर मे मन्दिर आपको मिल जायेंगे, जहाँ लोग आस्था की नदी मे डुबकी लगाते है और भक्तिमय हो जाते है, किन्तु हर मन्दिर का अपना अलग-अलग महत्व और कहानी होते है! आज हम आपको ऐसी एक दिव्य मन्दिर के बारे मे बताने वाले है जो आदि-अनादि काल से मौजूद है और यहाँ पर स्वयं भगवान शंकर और माता गौरी प्रकट हुई थी, आखिर उनका यहाँ प्रकट होना क्या दर्शाता है? क्या है असली कहानी? आखिर काममुद्रा मे क्यू है प्रतिमा? क्या वास्तव मे मन्दिर के दावे सच है? इन सारी बातों को हम आज बारीकी से आपके समक्ष रखेंगे, तो चलिए शुरू करते है अपने यात्रा को :-
यह बात है आज से हजारों वर्ष पूर्व त्रेतायुग की ज़ब धरती लोक पर सभी लोग वैष्णो (सनातनी) धर्म को अपनाते जा रहे थे और भक्ति के सागर मे खुद को समर्पित कर जन्म-जन्मांतर के कड़ी से मुक्त होते जा रहे थे ! जिस कारण स्वर्ग लोक मे देवताओं के अपेक्षा मृत्युलोक से आये लोग हो गए थे, उधर सनातनी और वैराग्य के मार्ग पर अग्रसर पृथ्वीवासी के कारण कामदेव का अस्तित्व खतरे मे आ गया!
इस संकट को देख देवराज इंद्र और समस्त देवतागण कैलाश की ओर रुख कर दिए और महादेव के शरण मे पहुंच गए ! देवतागण महादेव के समक्ष पहुंचकर प्रणाम कर अपनी बातों को रखे और इस संकट से निवारण और कामदेव के जीवन की भीख मांगने लगे !
माता गौरी अपने समक्ष कामदेव को जलाता देख घबरा गयी और महादेव को बड़ी चिंतामयी भाव से बोलती है – हे महादेव ! अगर, कामदेव नहीं रखे तो फिर कार्तिकेय का जन्म कैसे होगा और अगर कार्तिकेय का जन्म नहीं होगा तो फिर वृकासुर का वध कौन करेगा ! महादेव ने मुस्कुराते हुए बोला – हे देवी! आप चिंन्ता न करे विधि का विधान सर्वप्रमाणिक है और यह सब के हित हेतु ही है, इन्द्र ने हड़बड़ाते हुए बोला – वो सब तो ठीक है प्रभु पर काम देव का अस्तित्व खतरे है, अगर ये न रहे तो सृष्टी का संतुलन बिगड़ जायेगा
महादेव ने बड़े मधुर स्वर मे कहा – देवराज इन्द्र, आप चिंता न करे कामदेव को कुछ नहीं होगा !
मैं इनको यह वरदान देता हु की यह हर मनुष्य, देवता, राक्षस, हर जीवित प्राणी मे इनका वास होगा !!
इतना सुनते ही कामदेव की ज्वाला समाप्त हो गई और कामदेव महादेव के चरणों मे गीर आभार व्यक्त करने लगे….
उसके बाद महादेव और माता गौरी नारायणी (गंडक) के तट पर एक प्रतिमा के रुप मे प्रकट हुए ! जहाँ उस समय वाणासुर नामक एक शिव भक्त रहा करता था, देवता इस दिव्य प्रतिमा के दर्शन के लिए कई वर्षो तक पृथ्वीलोक मे भटकते रहे और अंत मे नारायणी तट तक पहुंचते ही देवताओं को महादेव और माता गौरी के होने का आभास होने लगा, वहां उस मंदिर मे देवता गण ने देखा की महादेव के जंघे पर माता गौरी बैठी है और महादेव का बाया हाथ माता के स्तन पर है और दूसरे हाथ मे भगवान त्रिशूल एवम रुद्राक्ष की माला लिए हुए है /
अर्थात सांसारिक (वैवाहिक) जीवन के साथ भी प्रभु की आराधना कर मोक्ष के द्वार तक पंहुचा जा सकता है !
सिर्फ वैराग्य को अपनाकर भगवान अपने भक्तो को सांसारिक जीवन के अनुभव से वांछित नहीं करना चाहते थे !
आज भी यह मन्दिर बिहार के सारण जिले के सोनपुर अनुमंडल मे नारायणी अर्थात गंडक के पावन तट पर अवस्थित है / यहाँ हज़ारो श्रद्धालु अपनी श्रद्धा इस दिव्य पीठ की समर्पित करने आते है और मनोवांछित फल प्राप्त कर लौटते है / यह मन्दिर सन्यास और मोक्ष के बिच एक सरल मार्ग को दर्शाता है, जिसके अनुसरण से हम मोक्ष और परम् सुख की प्राप्ति कर सकते है !
अगर आप इस दिव्य मंदिर का दर्शन करना चाहते तो आप इस पते का अनुसरण कर आ सकते है !
राज्य :- बिहार
जिला :- सारण
अनुमंडल :- सोनपुर
पिन कोड़ :- 841101
विस्तार पता – पटना से तकरीबन 20-25 किलोमीटर सोनपुर नगर पंचायत, सोनपुर स्टेशन से 2 किलोमीटर पूरब गंडक के किनारे यह मन्दिर अवस्थित है, इस मन्दिर को स्थानीय लोग “आपरूपी गौरी-शंकर मंदिर” बोलते है, हरिहर नाथ मन्दिर एवम सोनपुर मेला से यह मन्दिर महज़ 300 मीटर की दूरी पर है
जय महादेव
(लेखन- गौतम राज़)